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Showing posts from August, 2020

भगवती चरण वर्मा : चित्रलेखा

  1. मनुष्य अनुभव प्राप्त नहीं करता , परिस्थितियां मनुष्य को अनुभव प्राप्त कराती हैं। 2. यदि कोई अमर है तो अजन्मा भी है। जहां सृष्टि है, वहां प्रलय भी रहेगा। आत्मा अजन्मा है, इसलिए अमर है, पर प्रेम अजन्मा नहीं है, किसी व्यक्ति से प्रेम होता है तो उस स्थान पर प्रेम जन्म लेता है। संबंध होना ही उस संबंध का जन्म लेना है वह संबंध अनंत नही है। कभी न कभी उस संबंध का अंत होगा ही। 3. प्रेम और वासना में भेद केवल इतना है कि वासना पागलपन है और प्रेम गंभीर है। 4. क्या बिना भोग-विलास के प्रेम असंभव है? मैं तुमसे इस समय केवल शारीरिक संबंध तोड़ रही हूं: इसकी अपेक्षा हमारा आत्मिक संबंध और दृढ़ हो जाएगा। 5.अपराध कर्म में होता है, विचार में नहीं। 6. उन्माद अस्थाई होता है , और ज्ञान स्थाई। 7. प्रकृति के अपूर्ण  होने के कारण ही मनुष्य ने कृत्रिमता की शरण ली है। 8. प्रेम आत्मा से होता है, शरीर से नहीं।

पारुल पुखराज : कुछ कविताएं

1. ना जाने का अभाव कहीं जा कर लौटने की याद इतनी ताजा निराश नहीँ करती अब न जाने का अभाव हमेशा न जा पाने की विकलता पाती है शरण बार-बार  लौट आने के स्मृति में दरवाजा खोल अंदर आने में  बाहर निकलने की याद घुल  चुकी दरवाजा बंद कर लौटना  बार-बार जाने के बाद ही हुआ संभव मगर लौटने की याद इतनी ताजा  कि बस... 2. कुछ भी इतना पैना कहाँ समय यह बीहड़  कटेगा नहीं धैर्य से भी नहीं संसार मे कुछ भी इतना पैना कहां काट सके भेद सके आर-पार जो इसे ग्रीष्म की धूप सा चिलचिलाता सोख रहा जीवन रस समय यह जड़ है थिर अंगद का पाँव

Anna burns

 Milk man by the Anna Burns (2018 में मान बुकर प्राप्त उपन्यास) अनुवाद : अनुपमा ऋतु/ उपमा ऋतु कुछ अंश... अ ट्ठारह की उम्र में मुझे उन तौर-तरीकों का पता ना था, जिनसे अतिक्रमण किया जाता है। उनको लेकर मेरे मन मे एक अहसास था। एक सहज आभास। कुछ परिस्थितियों और कुछ लोगों के प्रति जुगुप्सा जैसा भाव था मेरे मन में, लेकिन मैं नही जानती थी कि आभास और जुगुप्सा के भाव भी संचित होते हैं।         मैं नहीं जानती थी कि मुझे नापसंद करने का अधिकार है। कि मैं पास आने वाले किसी भी आदमी को या हर आदमी को बर्दाश्त करने के लिए नहीं बनी हूँ। इस बुक को आप नीचे दिए गए link पर जाकर भी खरीद सकते हैं। Gwala ( Milkman Hindi translation) https://www.amazon.in/dp/9388707281/ref=cm_sw_r_cp_apa_i_Zz3rFb8A0YMZH

कुछ कविताएं : संजय कुंदन

1 ये साधारण लोगों की पराजय की कहानियां हैं जब टीवी के पर्दे पर खुलते हैं जुर्म के पन्ने  अक्सर दिखता है कमजोर आदमी ही मुजरिम की जगह नज़र आता है एक छोटा शहर या कस्बा एक मलिन बस्ती, टेढ़ी-मेढ़ी गालियां पुराने मकान के छप्पर कबूतरों के दड़के और हैंड पम्प इनमे जो अपराधी दिखता है वह तो खुद ही मर चुका होता है किसी की जान लेने से पहले नहीं दिखाया जाता उसका मरना बार-बार मरना रोज-रोज ,थोड़ा -थोड़ा मरना। 2 उन्हें पसंद था एक तितली को मुट्ठी में बंद कर उसे फड़फड़ाते देखना वे पूरी दुनिया को अपने अस्तबल की तरह देखते थे वे घोड़ों से ज्यादा आदमी को हांकना पसंद करते थे वे पूरी धरती में अपना वीर्य रोपना चाहते थे उन्होंने ही रची थी दंड संहिताएँ उन्होंने ही नियुक्त किये थे न्यायाधीश और संतरी उन्होंने ही बनाएं थे अपराधी।

निर्मला पुतुल की कविता

  मैंने आंगन में गुलाब लगाए इस उम्मीद से की उसमें फूल खिलेंगे लेकिन अफसोस ,कि उसमे कांटे ही निकले मैं सींचती रोज सुबह-शाम और देखती रही उसका तेजी से बढ़ना। वछ तेजी से बढ़ा भी पर उसमे फूल नहीं आए वो फूल जिसमे मेरे सपने जुड़े थे जिससे मैं जुड़ी थी उसमे फूल का नहीं आना मेरे सपनों का मर जाना था  एक दिन लगा कि मैं इसे उखाड़कर फेंक दूं पर सोचती हूँ क्या बार -बार उखाड़ कर फेंक देने और उसकी जगह नए फूल लगा देने से क्या मेरी जिंदगी के सारे कांटे निकल जाएंगे? हकीकत तो यह है कि  चाहे जितने फूल बदल दे हम लेकिन कुछ फूल की नीयत ही ऐसी होती है जो फूल की जगह कांटे लेकर आते हैं शायद मेरे आंगन में लगा गुलाब भी कुछ ऐसा ही है मेरी जिंदगी के लिए...।

प्रसिद्ध उद्धरण:हजारीप्रसाद द्विवेदी

प्रमुख उद्धरण: हजारी प्रसाद द्विवेदी  स्नेह बडी दारूण वस्तु है,ममता बड़ी प्रचंड शक्ति है। मैं स्त्री शरीर को देव मंदिर के समान पवित्र मानता हूं। दीपक क्या है, इसकी ओर अगर ध्यान देना , तो उसके प्रकाश में उद्भाषित वस्तुओं को नहीं देख सकेगा, तू दीपक की जांच कर रहा है, उससे उद्भाषित सत्य की नहीं। पुरुष स्त्री को शक्ति समझकर ही पूर्ण हो सकता है; पर स्त्री, स्त्री को शक्ति समझकर अधूरी रह जाती है। स्त्री प्रकृति है। वत्स, उसकी सफलता पुरुष को बांधने में है, किंतु सार्थकता पुरुष की मुक्ति में है। किसी से न डरना , गुरु से भी नहीं, मंत्र से भी नहीं, लोक से भी नहीं, वेद से भी नहीं। अज्ञजन का अपराध साधुजन मन मे नहीं लाते। धर्म के लिए प्राण देना किसी जाति का पेशा नहीं है,वह मनुष्य मात्र का उत्तम लक्ष्य है। न्याय जहां से भी मिले , वहां से बलपूर्वक खींच लाओ। सामान्य मनुष्य जिस कार्य के लिए लांछित होता है, उसी कार्य के लिए बड़े लोग सम्मानीय होते हैं।

उदय प्रकाश की कविता

 कविता~  एक जल्दबाज बुरी कविता में आंकड़े-  कविता का एक वाक्य लिखने में दो मिनट लगते हैं इतनी देर में चालीस हजार बच्चे मर चुके होते हैं ज्यादातर तीसरी दुनिया के  भूख और रोग से दस वाक्यों की खराब जल्दबाज कविता में अमूमन लग जाते है बीस से पच्चीस मिनट इतनी देर में चार से पाँच लाख बच्चे समा जाते हैं मौत के मुँह में कविता अच्छी हो इतनी की कवि और आलोचक उसे कविता कहना पसंद ना करें या उसके कई ड्राफ्ट तैयार हों तो तब तक कई करोड़ बच्चे, कई हज़ार या लाख औरतें और नागरिक मर चुके होते हैं निरपराध इस विश्वतंत्र मे यानी ज्यादा मुकम्मल कविता के नीचे एक बहुत बड़ा शमशान होता है जितना बड़ा शमशान उतना ही कवि और राष्ट्र महान।            -उदय प्रकाश

तमस उपन्यास की समीक्षा

भीष्म साहनी का उपन्यास तमस 1973 जाति-प्रेम, ,संस्कृति,परंपरा,इतिहास और राजनीति जैसी संकल्पनाओं की आड़ में शिकार खेलनेवाली शक्तियों के दुःसाहस भरे जोखिमों को खुले तौर पर प्रस्तुत करता है। इसमें लेखक ने 1947 ई. के मार्च-अप्रैल में हुए भीषण साम्प्रदायिक दंगे की पांच दिनों की कहानी इस रूप में प्रस्तुतु की है कि हम देश-विभाजन के पूर्व की सामाजिक मानसिकता और उसकी अनिवार्य परिणति की विभीषिका से पूरी तरह परिचित हो जाएं। उपन्यास के पात्रों महेताजी, वानप्रस्थी,जनरैल,बख्शी जी,नत्थू, मुरादली,देवव्रत,रणवीर, आदि के माध्यम से भीष्म साहनी फिरकापस्ति, कट्टरधर्मिता, और धर्मान्धता आदि की मनःस्थितियों कर सामाजिक संदर्भों को पर्त दर पर्त उघाड़ते हैं।     हिन्दू या मुसलमान इतने कट्टर हो सकते हैं,इसकी सहज रूप से कल्पना भी नही की जा सकती। कट्टर हिंदूवाद की बखिया उघाड़ती भीष्म जी की भाषा शैली उस वातावरण का सफल चित्रांकन करती है।     उपन्यास का प्रारंभ नत्थू चमार के एक बदरंग और मोटे सुअर को मारने की लंबी उबाऊ और थका देने वाली प्रक्रिया से होता है। उसे बाद में मस्जिद के बाहर फिंकवा दिया जाता है, ...

रवीन्द्रनाथ के राष्ट्रीय गान

संकलित:  अशोक के फूल ( हजारी प्रसाद द्विवेदी) रवीन्द्रनाथ की प्रतिभा बहुमुखी थी,परंतु प्रधान रूप से वह कवि थे। कविता में भी उनका झुकाव गीति कविता की ओर था। उन्होंने गाने में आनंद पाया, सुर के माध्यम से परम सत्य का साक्षात्कार किया और समस्त विश्व में अखंड सुर का सौंदर्य व्याप्त देखा। एक प्रसंग में उन्होंने कहा था," गान के सुर के आलोक में इतने देर बाद जैसे सत्य को देखा । अंतर में यह ज्ञान की दृष्टि सदा जाग्रत न रहने से ही सत्य मानो तुच्छ होकर ही दूर खिसक पड़ता है। सुर का वाहन हमे उसी पर्दे की ओट में सत्य के लोक में बहा करके ले जाता है। वहाँ पैदल चलकर नही  जाया जाता, वहां की राह किसी ने आंखों नही देखी।"     रवीन्द्रनाथ का सम्पूर्ण साहित्य संगीतमय है। उनकी कविताये गान है,परंतु उनके पास केवल ताल-सुर के वाहन नही हैं, अर्थगाम्भीर्य और शब्द माधुर्य के भी आगार हैं। असल मे जिस प्रकार उनकी कविताओं में संगीत का रस है, उसी प्रकार बल्कि उससे भी अधिक , उनके गाने में कवित्व है। सुर से विचुत होने पर भी उनके गान प्रेरणा और स्फूर्ति देते हैं। उन्होंने सैकड़ों गान लिखे हैं। ये गान गए जाने...

हिरोशिमा कविता (अज्ञेय)

कविता: हिरोशिमा (अज्ञेय) एक दिन सहसा सूरज निकला अरे क्षितिज पर नहीं, नगर के चौक : धूप बरसी पर अंतरिक्ष से नहीं, फटी मिट्टी से। छायाएँ मानव-जन की दिशाहिन सब ओर पड़ीं-वह सूरज नहीं उगा था वह पूरब में, वह बरसा सहसा बीचों-बीच नगर के: काल-सूर्य के रथ के पहियों के ज्‍यों अरे टूट कर बिखर गए हों दसों दिशा में। कुछ क्षण का वह उदय-अस्‍त! केवल एक प्रज्‍वलित क्षण की दृष्‍य सोक लेने वाली एक दोपहरी। फिर? छायाएँ मानव-जन की नहीं मिटीं लंबी हो-हो कर: मानव ही सब भाप हो गए। छायाएँ तो अभी लिखी हैं झुलसे हुए पत्‍थरों पर उजरी सड़कों की गच पर। मानव का रचा हुया सूरज मानव को भाप बनाकर सोख गया। पत्‍थर पर लिखी हुई यह जली हुई छाया मानव की साखी है।

UGC Approved Hindi Journal List

नये नियमों के अनुसार शोधार्थियों और शिक्षकों को पी-एच.डी. के दौरान अपने शोध कार्य के साथ दो रिसर्च पेपर प्रकाशित करवाना भी आवश्यक है। ये रिसर्च पेपर UGC approved Journal  में ही प्रकाशित होने चाहिए तभी मान्यता प्राप्त होंगे। तो आज हम  हिन्दी की कुछ ऐसी पत्रिकाओं के नाम बता रहे है जो UGC  Approved  हैं।  समय-समय पर UGC इनमे कुछ संसोधन भी करता रहता है। इसके लिए आप नीचे दी जा रही UGC की वेबसाइट पर भी चेक कर सकते हैं अधिगम                        28. बनासजन अनुवाद                         29. बहुवचन अस्मितदर्श                    30. भारत पत्रिका आलोचना                      31. भारतीय आधुनिक शिक्षा इतिहास                        32. भाषा इतिहास दर्पण          ...