भीष्म साहनी का उपन्यास तमस 1973 जाति-प्रेम, ,संस्कृति,परंपरा,इतिहास और राजनीति जैसी संकल्पनाओं की आड़ में शिकार खेलनेवाली शक्तियों के दुःसाहस भरे जोखिमों को खुले तौर पर प्रस्तुत करता है। इसमें लेखक ने 1947 ई. के मार्च-अप्रैल में हुए भीषण साम्प्रदायिक दंगे की पांच दिनों की कहानी इस रूप में प्रस्तुतु की है कि हम देश-विभाजन के पूर्व की सामाजिक मानसिकता और उसकी अनिवार्य परिणति की विभीषिका से पूरी तरह परिचित हो जाएं। उपन्यास के पात्रों महेताजी, वानप्रस्थी,जनरैल,बख्शी जी,नत्थू, मुरादली,देवव्रत,रणवीर, आदि के माध्यम से भीष्म साहनी फिरकापस्ति, कट्टरधर्मिता, और धर्मान्धता आदि की मनःस्थितियों कर सामाजिक संदर्भों को पर्त दर पर्त उघाड़ते हैं।
हिन्दू या मुसलमान इतने कट्टर हो सकते हैं,इसकी सहज रूप से कल्पना भी नही की जा सकती। कट्टर हिंदूवाद की बखिया उघाड़ती भीष्म जी की भाषा शैली उस वातावरण का सफल चित्रांकन करती है।
उपन्यास का प्रारंभ नत्थू चमार के एक बदरंग और मोटे सुअर को मारने की लंबी उबाऊ और थका देने वाली प्रक्रिया से होता है। उसे बाद में मस्जिद के बाहर फिंकवा दिया जाता है, जिसे मुसलमान देख कर उत्तेजित हो जाता है। जिसकी प्रतिक्रियास्वरूप एक गाय काटी जाती है और जिससे हिन्दू भड़क जाते हैं। तनाव की यह स्थिति सम्पूर्ण वातावरण में फैल जाती है। यह दंगा एक वीभत्स और अमानवीय जन- संहार में बदल जाता है।
इन सबके बावजूद शहनवाज जैसे समान मुसलमान और रघुनाथ जैसे सम्पन्न हिन्दू के बीच उस वातावरण में भी दोस्ती बनी रहती है। भीष्म साहनी गांव की ओर जब मुड़ते है तब हिन्दू -मुसलमान समाज के विडम्बनापूर्ण यथार्थ के कई रहस्यों का उद्गाटन भी करते चलते हैं।
तमस की प्रासंगिकता यह है कि आजादी से पूर्व अंग्रेज हाकिमों की फूट पैदा करनेवाली चाल जो पहले विवाद को जन्म देती हैं फिर वहां शांति व्यवस्था बहाल करने के लिए मसीहा बनकर उभरते हैं। उपन्यास में लीजा कहती है-" मैं सब जानती हूं, देश के नाम पर लोग तिहरे साथ लड़ते हैं,और धर्म के नाम पर तुम इन्हें आपस मे लड़ाते हो।" आज भी यह प्रवत्ति तथाकथित सत्ताधारियों में बनी हुई है।
साहनी जी का यह उपन्यास साम्प्रदायिकता की समस्या और उससे उपजे विचारात्मक संदर्भों को नवीनता के साथ हमारे सामने यथार्थवादी ढंग से रखता है।
लेखक एक जगह स्वयं लिखते हैं," एक संकटपूर्ण स्थिति की पृष्ठभूमि में विभिन्न धर्मों ,वर्गों विचारधाराओं,के लोगों की प्रतिक्रिया और उनके कारनामे ही इस उपन्यास में दिखाए गए हैं। इससे अधिक कुछ नहीँ।"
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