1. ना जाने का अभाव
कहीं जा कर लौटने की याद
इतनी ताजा
निराश नहीँ करती अब
न जाने का अभाव
हमेशा न जा पाने की विकलता
पाती है शरण
बार-बार
लौट आने के स्मृति में
दरवाजा खोल अंदर आने में
बाहर निकलने की याद घुल चुकी
दरवाजा बंद कर
लौटना
बार-बार
जाने के बाद ही हुआ संभव
मगर लौटने की याद
इतनी ताजा
कि बस...
2. कुछ भी इतना पैना कहाँ
समय यह बीहड़
कटेगा नहीं
धैर्य से भी नहीं
संसार मे कुछ भी इतना पैना कहां
काट सके
भेद सके आर-पार जो इसे
ग्रीष्म की धूप सा
चिलचिलाता
सोख रहा जीवन रस
समय यह जड़ है
थिर
अंगद का पाँव
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