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प्रसिद्ध उद्धरण:हजारीप्रसाद द्विवेदी

प्रमुख उद्धरण: हजारी प्रसाद द्विवेदी
  •  स्नेह बडी दारूण वस्तु है,ममता बड़ी प्रचंड शक्ति है।

  • मैं स्त्री शरीर को देव मंदिर के समान पवित्र मानता हूं।

  • दीपक क्या है, इसकी ओर अगर ध्यान देना , तो उसके प्रकाश में उद्भाषित वस्तुओं को नहीं देख सकेगा, तू दीपक की जांच कर रहा है, उससे उद्भाषित सत्य की नहीं।

  • पुरुष स्त्री को शक्ति समझकर ही पूर्ण हो सकता है; पर स्त्री, स्त्री को शक्ति समझकर अधूरी रह जाती है।


  • स्त्री प्रकृति है। वत्स, उसकी सफलता पुरुष को बांधने में है, किंतु सार्थकता पुरुष की मुक्ति में है।


  • किसी से न डरना , गुरु से भी नहीं, मंत्र से भी नहीं, लोक से भी नहीं, वेद से भी नहीं।


  • अज्ञजन का अपराध साधुजन मन मे नहीं लाते।


  • धर्म के लिए प्राण देना किसी जाति का पेशा नहीं है,वह मनुष्य मात्र का उत्तम लक्ष्य है।


  • न्याय जहां से भी मिले , वहां से बलपूर्वक खींच लाओ।

  • सामान्य मनुष्य जिस कार्य के लिए लांछित होता है, उसी कार्य के लिए बड़े लोग सम्मानीय होते हैं।



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