इंशा का जन्म जालंधर जिले, पंजाब, भारत के फिल्लौर तहसील में हुआ था। उनके पिता राजस्थान से थे। 1946 में, उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय से बीए की डिग्री प्राप्त की और बाद में 1953 में कराची विश्वविद्यालय से एमए किया। वह रेडियो पाकिस्तान, संस्कृति मंत्रालय और पाकिस्तान के राष्ट्रीय पुस्तक केंद्र सहित विभिन्न सरकारी सेवाओं से जुड़े रहे।
1940 के दशक के उत्तरार्ध में, इब्न-ए-इंशा लाहौर में प्रसिद्ध फिल्म कवि साहिर लुधियानवी के साथ भी एक साथ रहे थे। वे प्रगतिशील लेखक आंदोलन में भी सक्रिय थे। इब्न-ए-इंशा ने 11 जनवरी 1978 को हॉजकिन के लिम्फोमा से मरने से पहले अपना शेष जीवन कराची में बिताया था, जबकि वह लंदन में थे। बाद में उन्हें कराची, पाकिस्तान में दफनाया गया।
साहित्यिक कैरियर
इंशा को उनकी पीढ़ी के सर्वश्रेष्ठ कवियों और लेखकों में से एक माना जाता है। इब्न-ए-इंशा ने कई यात्रा वृतांत लिखे थे, उनकी कविता के साथ-साथ, उन्हें उर्दू के सर्वश्रेष्ठ हास्य लेखकों में से एक माना जाता था।
पुरस्कार और मान्यता
1978
में पाकिस्तान के राष्ट्रपति द्वारा इब्न-ए-इंशा को प्राइड ऑफ परफॉर्मेंस अवार्ड से सम्मानित किया गया।
मौत
इब्न-ए-इंशा ने अपने जीवन के अंतिम वर्ष कराची में बिताए। 11
जनवरी 1978 को लंदन में उनकी मृत्यु हो गई,
लेकिन बाद में उन्हें कराची ,
पाकिस्तान में दफनाया गया।
मशहूर गजलें
1 . फ़र्ज़ करो हम अहले वफ़ा हों, फ़र्ज़ करो दीवाने हों
फ़र्ज़ करो ये दोनों बातें झूठी हों अफ़साने हों
फ़र्ज़ करो ये जी की बिपता, जी से जोड़ सुनाई हो
फ़र्ज़ करो अभी और हो इतनी, आधी हमने छुपाई हो
फ़र्ज़ करो तुम्हें ख़ुश करने के ढूंढे हमने बहाने हों
फ़र्ज़ करो ये नैन तुम्हारे सचमुच के मयख़ाने हों
फ़र्ज़ करो ये रोग हो झूठा, झूठी पीत हमारी हो
फ़र्ज़ करो इस पीत के रोग में सांस भी हम पर भारी हो
फ़र्ज़ करो ये जोग बिजोग का हमने ढोंग रचाया हो
फ़र्ज़ करो बस यही हक़ीक़त बाक़ी सब कुछ माया हो
2. हम घूम चुके बस्ती-वन में
इक आस का फाँस लिए मन में
कोई साजन हो, कोई प्यारा हो
कोई दीपक हो, कोई तारा हो
जब जीवन-रात अंधेरी हो
इक बार कहो तुम मेरी हो
जब सावन-बादल छाए हों
जब फागुन फूल खिलाए हों
जब चंदा रूप लुटाता हो
जब सूरज धूप नहाता हो
या शाम ने बस्ती घेरी हो
इक बार कहो तुम मेरी हो
हाँ दिल का दामन फैला है
क्यों गोरी का दिल मैला है
हम कब तक पीत के धोखे में
तुम कब तक दूर झरोखे में
कब दीद से दिल की सेरी हो
इक बार कहो तुम मेरी हो
क्या झगड़ा सूद-ख़सारे का
ये काज नहीं बंजारे का
सब सोना रूपा ले जाए
सब दुनिया, दुनिया ले जाए
तुम एक मुझे बहुतेरी हो
इक बार कहो तुम मेरी हो
इब्ने इंशा की अन्य गजलें आप नीचे दी गई लिंक पर जाकर पढ़ सकते हैं।
https://www.rekhta.org/Poets/ibn-e-insha/all?lang=hi
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