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हिंदी साहित्य में गांधीवादी विचारधारा

दक्षिण अफ्रीका के प्रवासी जीवन में गांधी जी ने देश के सहस्त्रों गरीब, अनपढ़, बेरोजगार मजदूरों को जो गिरमिट (एग्रीमेंट) पर दक्षिण अफ्रीका पहुंचे थे, उन्हें स्वयं के अधिकारों के प्रति जागरूक करने एवम मनुष्य की भांति जीवन-यापन करने योग्य बनाने के लिए, कलम को क्रांति के सशक्त हथियार के रूप में ऊर्जायुक्त किया। प्रवासी जीवन के प्रत्येक क्षण में उन्हें विदेशियों द्वारा अपमान एवम भारतीय होने के कारण तिरस्कृत दृष्टि से देखा गया। उन्हें ट्रेन से भारतीय होने के कारण नीचे फेंक दिया गया। यह घटना सिर्फ गांधी जी के साथ घटित हुई हो ऐसा नही था अपितु उन समस्त नागरिकों ने इन यन्त्रणाओं को भोगा, जो भारतीय थे और गिरमिट पर दक्षिण अफ्रीका गए थे। इन घटनाओं के पश्चात भी गांधी जी ने अपने मार्ग में हिंसा रूपी विध्वंसक अस्त्र को नही आने दिया, उन्होंने अपनी बात को समस्त भारतीयों के सामने रखने के लिए और अधिकारों के प्रति जागरूक करने के लिए कलम को हथियार बनाया।
   एक बार मजिस्ट्रेट ने उन्हें कोर्टरूम में पगड़ी उतारकर प्रवेश करने के लिए कहा तो उनका कथन था-“ मी लॉर्ड यह मेरा फेटा है। हम लोगों के सम्मान का प्रतीक! मेरे लिए ऐसा करना संभव नही...।“
    यह फेटा गांधी जी के लिए भारतीय अस्मिता का प्रतीक था गांधी जी ने इस घटना को; भारतीयों के सम्मुख रखने के लिए विशेष जनमत तैयार करने के लिए अखबार में छपवाया। यह उनके द्वारा तालाब में फेंक गया पहला कंकड़ था। गांधी जी की विदेश में चल रही इस अहिंसक क्रांति का प्रभाव भारत के राजनीतिज्ञों एवम सामान्य नागरिकों पर भी पड़ा साथ ही इसका स्पष्ट प्रभाव भारतीय साहित्य पर भी देखा गया। भारतीय साहित्य में कविता को एक कला माना गया है। मनुष्य के श्रम की तरह वह भी स्वतंत्रता का अस्त्र है। तत्काल ही गांधीवाद से प्रभावित कवियों की एक पूरी कतार उभर कर सामने आई। इन कवियों में प्रमुख रूप से माखनलाल चतुर्वेदी, बालकृष्ण शर्मा नवीन , सियाराम शरण गुप्ता इत्यादि हैं।
    समस्त भारतीय जनता का अंग्रेजी शासकों के प्रति जो आक्रोश था, वह धीरे-धीरे बढ़ता हुआ स्वाधीनता संग्राम के रूप में फूट पढ़ा और महात्मा गांधी के नेतृत्व में आजादी का संघर्ष एक नए रूप में- अहिंसा और सत्य पर आधारित असहयोग के रूप में हमारे सामने आया। इस असहयोग को भारतीय जनमानस के हृदय में पहुंचने का कार्य हमारे साहित्यकारों ने किया। कलाकारों का यह कर्तव्य होता है कि वह जिस समाज में रहता है, उसके प्रति उत्तरदायित्व को पूरा करे- जिस देश की यह रोटी खाता है, उसका ऋण चुकाए। माखनलाल चतुर्वेदी ने ‘कैदी और कोकिला: शीर्षक कविया में अंग्रेजी राज्य की यंत्रणाओ को कलमबद्ध करते हुए कहा है- ‘क्या ?  देख न सकती जंजीरों का गहना?/ हथकड़िया क्यों? यह ब्रिटिश राज्य का गहना।‘
     नवीन जी तो गांधी जी के आवाह्न पर कालेज छोड़ कर राजनीति में सक्रिय भाग लेने लगे। इन्होंने कवि कर्म की प्रमुखता देश की स्वतंत्रता तथा नवीन समाज की रचना के लिए देश के नागरिकों को उत्प्रेरित करना माना है- ‘ कवि कुछ ऐसी तान सुनाओ , जिससे उथल पुथल मच जाए,/ एक हिलोर इधर से आये, एक हिलोर उधर से आये।‘ वैसे तो हमारे विश्व का इतिहास हिंसा द्वारा परिवर्तन लाने के प्रयोगों से भरा पड़ा है, परन्तु हर जगह असफलता ही नज़र आई है। सियाराम शरण गुप्ता का तो गांधीवाद में अटूट विश्वास था। इनका मानना था-‘ हिंसा का है एक अहिंसा प्रत्युयतर’। इन कवियों के साथ ही छायावादी त्रयी कहे जाने वालों में प्रसाद का गीत’ अरुण वह मधुमय देश हमारा’ हो या निराला की ‘जागो फिर एक बार’ शीर्षक कविता हो; नागरिकों में राष्ट्रीयता की भावना का अभूतपूर्व संचार किया है। पंत जी की ‘युगवाणी’ पर तो गांधीवाद का स्पष्ट प्रभाव है। इन्होंने सत्य-अहिंसा को अटल एवं अविचल माना है- ‘ नहीं जानता, युग विवर्त में होगा कितना जनक्षय ,/ पर मनुष्य को सत्य-अहिंसा, इष्ट रहेंगे निश्चय।‘ भारतीय साहित्य के इन सभी कवियों की रचनायें एवं गांधी जी की कलम तात्कालीन समय मे जितनी धारदार थी, वर्तमान में भी कलम की वह धार जमसंचार की क्रांति के माध्यम से उत्तरोत्तर वृद्धि कर रही है।

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