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अज्ञेय के भाषा उद्धरण


 
भाषा


1. हिन्दी परम्परा से विद्रोह की भाषा रही है। प्रारम्भिक काल से ही हिन्दी- रचना का एक बहुत बड़ा अंश न्यूनाधिक संगठित वर्गों द्वारा किसी न किसी प्रवृत्ति के विरोध की अभिव्यक्ति रहा है। यह विरोध का स्वर सदैव प्रगति का स्वर रहा हो, ऐसा नही है, कभी - कभी यह स्वर परिवर्तन के विरोध ; प्रतिक्रिया का जीर्णपरम्परा अथवा पुराने विशेषाधिकारों की रक्षा की भावना से प्रेरित संकीर्णता का स्वर भी रहा।


2. एक विदेशी भाषा मे आने भाव को छिपा लेना अधिक सहज है। अपनी भाषा का अपनापन हमें अपना हृदय खोल देने को खामखाह विवश कर देता है।


3. सरकारी कामकाज के लिए भाषा एक होनी चाहिए मगर साहित्यिक अभिव्यक्ति के लिए हर लेखक को अपनी मातृभाषा का व्यवहार करना चाहिए।


4. भारत की आधुनिक भाषाओं में हिंदी ही सच्चे अर्थों में सदैव भारतीय भाषा रही है, क्योंकि वह निरंतर भारत की एक समग्र चेतना को वाणी देने का चेतन प्रयास करती रही है।


5. भाषा कल्पवृक्ष है। जो उस से आस्थापूर्वक मांगा जाता है, भाषा वह देती है। उस से कुछ मांगा ही न जाये, क्योंकि वह पेड़ से लटका हुआ नहीं दीख रहा है, तो कल्पवृक्ष भी कुछ नहीं देता।


6. ज्ञान के द्वारा हम सत्य की वास्तविकता को पहचानते हैं तो भाषा द्वारा उसकी सुंदरता को।


7. कवि भाषा नही लिखता, शब्द लिखता है।


8. भाषा हमारी सबसे पुरानी , सब से कड़ी, अनुलंघ्य सांस्कृतिक रूढ़ि है: अपने दावे के लिए उस का सहारा लेना- और दावे के लिए भाषा का सहारा अनिवार्य है।


9. मेरी खोज भाषा की खोज नहीं है, केवल शब्दों की खोज है।


10. भाषा अपने आप में अलग कुछ चीज़ नहीं होती। उसके साथ संस्कृति, विचारधाराएं और प्रवृत्तियां और जातिगत सहानुभूति भी बनी होती है।


अज्ञेय की कुछ महत्वपूर्ण किताबें

AGYEYA RACHNAVALI-10 https://www.amazon.in/dp/9326352269/ref=cm_sw_r_cp_apa_i_0XXxFbXCNTTTC


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