- वीरगाथा काल की असंदिग्ध सामग्री जो कुछ प्राप्त है , उसकी भाषा अपभ्रंश अर्थात प्राकृताभास हिंदी है।
- विद्यापति ने अपभ्रंश से भिन्न , प्रचलित बोलचाल की भाषा को 'देशी भाषा' कहा है।
- जब से प्राकृत बोलचाल की भाषा न रह गई तभी से अपभ्रंश साहित्य का आविर्भाव समझना चाहिए।
- प्राकृत की रूढियों से मुक्त पुराने काव्य - बीसलदेव रासो, पृथ्वीराज रासो।
- वज्रयान में महासुह (महासुख ) वह दशा बतलाई गई है जिसमे साधक शून्य में इस प्रकार विलीन हो जाता है, जिस प्रकार नमक पानी में।
- महाराष्ट्र के संत ज्ञानदेव अल्लाउद्दीन के समय में थे, इन्होंने अपने को गोरखनाथ की शिष्य परंपरा में कहा है।
- हिंदी साहित्य के अंतर्गत शुक्ल ने पिंगल भाषा को ही स्थान दिया है डिंगल को नहीं।
- नामदेव ने हिन्दू मुसलमान दोनों के लिए एक सामान्य भक्ति मार्ग का भी आभास दिया।
- कबीर को नाथ पंथियों की ह्रदय पक्ष शून्य अन्तः साधना और प्रेमतत्व का अभाव खटका।
- कृष्णा भक्ति शाखा केवल प्रेमस्वरूप ही लेकर नई उमंग में फैली।
भीष्म साहनी का उपन्यास तमस 1973 जाति-प्रेम, ,संस्कृति,परंपरा,इतिहास और राजनीति जैसी संकल्पनाओं की आड़ में शिकार खेलनेवाली शक्तियों के दुःसाहस भरे जोखिमों को खुले तौर पर प्रस्तुत करता है। इसमें लेखक ने 1947 ई. के मार्च-अप्रैल में हुए भीषण साम्प्रदायिक दंगे की पांच दिनों की कहानी इस रूप में प्रस्तुतु की है कि हम देश-विभाजन के पूर्व की सामाजिक मानसिकता और उसकी अनिवार्य परिणति की विभीषिका से पूरी तरह परिचित हो जाएं। उपन्यास के पात्रों महेताजी, वानप्रस्थी,जनरैल,बख्शी जी,नत्थू, मुरादली,देवव्रत,रणवीर, आदि के माध्यम से भीष्म साहनी फिरकापस्ति, कट्टरधर्मिता, और धर्मान्धता आदि की मनःस्थितियों कर सामाजिक संदर्भों को पर्त दर पर्त उघाड़ते हैं। हिन्दू या मुसलमान इतने कट्टर हो सकते हैं,इसकी सहज रूप से कल्पना भी नही की जा सकती। कट्टर हिंदूवाद की बखिया उघाड़ती भीष्म जी की भाषा शैली उस वातावरण का सफल चित्रांकन करती है। उपन्यास का प्रारंभ नत्थू चमार के एक बदरंग और मोटे सुअर को मारने की लंबी उबाऊ और थका देने वाली प्रक्रिया से होता है। उसे बाद में मस्जिद के बाहर फिंकवा दिया जाता है, ...
अत्यन्त ज्ञान वर्धक जानकारी के लिए बहुत बहुत धन्यवाद
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