- वीरगाथा काल की असंदिग्ध सामग्री जो कुछ प्राप्त है , उसकी भाषा अपभ्रंश अर्थात प्राकृताभास हिंदी है।
- विद्यापति ने अपभ्रंश से भिन्न , प्रचलित बोलचाल की भाषा को 'देशी भाषा' कहा है।
- जब से प्राकृत बोलचाल की भाषा न रह गई तभी से अपभ्रंश साहित्य का आविर्भाव समझना चाहिए।
- प्राकृत की रूढियों से मुक्त पुराने काव्य - बीसलदेव रासो, पृथ्वीराज रासो।
- वज्रयान में महासुह (महासुख ) वह दशा बतलाई गई है जिसमे साधक शून्य में इस प्रकार विलीन हो जाता है, जिस प्रकार नमक पानी में।
- महाराष्ट्र के संत ज्ञानदेव अल्लाउद्दीन के समय में थे, इन्होंने अपने को गोरखनाथ की शिष्य परंपरा में कहा है।
- हिंदी साहित्य के अंतर्गत शुक्ल ने पिंगल भाषा को ही स्थान दिया है डिंगल को नहीं।
- नामदेव ने हिन्दू मुसलमान दोनों के लिए एक सामान्य भक्ति मार्ग का भी आभास दिया।
- कबीर को नाथ पंथियों की ह्रदय पक्ष शून्य अन्तः साधना और प्रेमतत्व का अभाव खटका।
- कृष्णा भक्ति शाखा केवल प्रेमस्वरूप ही लेकर नई उमंग में फैली।
1. मनुष्य अनुभव प्राप्त नहीं करता , परिस्थितियां मनुष्य को अनुभव प्राप्त कराती हैं। 2. यदि कोई अमर है तो अजन्मा भी है। जहां सृष्टि है, वहां प्रलय भी रहेगा। आत्मा अजन्मा है, इसलिए अमर है, पर प्रेम अजन्मा नहीं है, किसी व्यक्ति से प्रेम होता है तो उस स्थान पर प्रेम जन्म लेता है। संबंध होना ही उस संबंध का जन्म लेना है वह संबंध अनंत नही है। कभी न कभी उस संबंध का अंत होगा ही। 3. प्रेम और वासना में भेद केवल इतना है कि वासना पागलपन है और प्रेम गंभीर है। 4. क्या बिना भोग-विलास के प्रेम असंभव है? मैं तुमसे इस समय केवल शारीरिक संबंध तोड़ रही हूं: इसकी अपेक्षा हमारा आत्मिक संबंध और दृढ़ हो जाएगा। 5.अपराध कर्म में होता है, विचार में नहीं। 6. उन्माद अस्थाई होता है , और ज्ञान स्थाई। 7. प्रकृति के अपूर्ण होने के कारण ही मनुष्य ने कृत्रिमता की शरण ली है। 8. प्रेम आत्मा से होता है, शरीर से नहीं।
अत्यन्त ज्ञान वर्धक जानकारी के लिए बहुत बहुत धन्यवाद
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