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Showing posts from May, 2020

Ramchandra Shukla ke Itihaas ke vishesh Kathan Part 2

वीरगाथा  काल की असंदिग्ध सामग्री जो कुछ प्राप्त है , उसकी भाषा अपभ्रंश अर्थात प्राकृताभास हिंदी है।  विद्यापति ने अपभ्रंश से भिन्न , प्रचलित बोलचाल की भाषा को 'देशी भाषा' कहा  है।  जब  से प्राकृत बोलचाल की भाषा न रह गई तभी से अपभ्रंश साहित्य का आविर्भाव समझना चाहिए।  प्राकृत की रूढियों  से मुक्त पुराने काव्य - बीसलदेव रासो, पृथ्वीराज रासो।  वज्रयान में महासुह (महासुख ) वह दशा बतलाई गई है जिसमे साधक शून्य में इस प्रकार विलीन हो जाता है, जिस प्रकार नमक पानी में।  महाराष्ट्र के संत  ज्ञानदेव अल्लाउद्दीन के समय में थे, इन्होंने अपने को गोरखनाथ की शिष्य  परंपरा में कहा है।  हिंदी  साहित्य के अंतर्गत शुक्ल ने पिंगल  भाषा को ही स्थान दिया है डिंगल  को नहीं।  नामदेव ने हिन्दू मुसलमान दोनों के लिए एक सामान्य भक्ति मार्ग का भी आभास दिया।  कबीर को नाथ पंथियों की ह्रदय पक्ष शून्य अन्तः साधना और प्रेमतत्व का अभाव खटका।  कृष्णा भक्ति शाखा केवल प्रेमस्वरूप ही लेकर नई  उमंग में फैली। 

http://nidhiagrwal.blogspot.com/2020/05/teachers-salary-of-self-finance-college.html

सेल्फ फाइनेंस कॉलेज के शिक्षकों के लिए ये एक अच्छी खबर है कि उन्हें अब न्यूनतम 21,600 रुपए प्रति माह वेतन मिलेगा। साथ ही, अनुमोदित महाविद्यालयों के शिक्षकों की तरह उन्हें सीएल, एमएल, मैटर्निटी लीव के साथ अन्य सुविधाओं का भी लाभ मिलेगा। हर वर्ग के विषयों के लिये ये वेतन भी अलग अलग होगा    जो कि 35000 से 45000 तक होगा।   अभी तक सेल्फ फाइनेंस कॉलेज के शिक्षकों के वेतन का कुछ निश्चित नियम नही था। लेकिन अब कालेज की फीस का 75% वेतन आदि कार्यों में खर्च होगा। बस उम्मीद हैं कि यह वेतन सीधे शिक्षकों के खातो में जाये न कि बिचौलियों के! https://m.livehindustan.com/uttar-pradesh/kanpur/story-csjmu-self-finance-teachers-minimum-salary-of-rs-21-600-3199799.html

रामचंद्र शुक्ल : उद्धरण

  हिंदी विषय के लिए सबसे महत्वपूर्ण किताब है -आचार्य रामचंद्र शुक्ल का हिंदी साहित्य का इतिहास।  इसके हर पृष्ठ की  प्रत्येक पंक्ति बहुत महत्वपूर्ण है।  यहां कुछ पंक्तियाँ दी जा रही हैं।  कबीर का ज्ञान पक्ष तो रहस्य और गुहा की भावना से विकृत मिलेगा पर सूफियों से जो प्रेम तत्व उन्होंने लिया वह  सूफियों के यहां चाहे कामवासना ग्रस्त हुआ हो , पर निर्गुण पंथ में अविकृत रहा।  वैष्णवों की कृष्ण भक्ति शाखा ने केवल प्रेमलक्षणा  भक्ति ली ;  फल यह हुआ की उसने अश्लील विलसिता की  प्रवत्ति जगाई।  सगुन और निर्गुण के नाम से भक्तिकाव्य की दो धाराएं विक्रम की १५ वीं  शताब्दी के अंतिम भाग से लेकर १७ वी  शताब्दी के अंत तक सामानांतर चली।   पद्मावत में प्रेमगाथा की परंपरा पूर्ण प्रौढ़ता को प्राप्त मिलती है. शेख्नबी से प्रेमगाथा परंपरा समाप्त समझनी चाहिए।  प्रेम और श्रृंगार का ऐसा वर्णन जो बिना किसी लज़्ज़ा और संकोच के सबके सामने पढ़ा जा सके , गोस्वामी जी का ही है।  गीतावली की रचना गोस्वामी जी ने सूरदास जी के अनुकरण पर की है।  सूर के श्रृंगारी पदों की रचना बहुत कुछ विद्यापति की पद्धत्ति पर हुई है।  काव